भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में बहुत कम व्यक्तित्व ऐसे हुए हैं जिन्होंने एक साथ न्यायपालिका और राजनीति दोनों में अपनी गहरी छाप छोड़ी हो। बी. सुदर्शन रेड्डी उन्हीं गिने-चुने लोगों में से एक हैं। 2025 में जब INDIA सहयोग (INDIA Bloc) ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया, तो यह कदम भारतीय राजनीति और संविधान की दुनिया में एक अनोखा अध्याय जोड़ गया।
बचपन और शिक्षा
बी सुदर्शन रेड्डी 78 साल के हैं बी. सुदर्शन रेड्डी का जन्म 8 जुलाई 1946 को तेलंगाना (तत्कालीन आंध्र प्रदेश) के रांगारेड्डी ज़िले के एक छोटे से गाँव में हुआ था। परिवार सामान्य था और कृषि पर आधारित था, लेकिन उनके अंतर बचपन से ही शिक्षा के प्रति गहरी रुचि रही।
उन्होंने अपनी पढ़ाई हैदराबाद में की और फिर ओस्मानिया विश्वविद्यालय से कानून (LLB) की डिग्री हासिल की। यहीं से उनकी न्याय-प्रतिनिधित्व और न्याय की दुनिया में यात्रा शुरू हुई।
1971 में उन्होंने आंध्र प्रदेश बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन कराया और विधिक पेशे में प्रवेश किया। यह वह समय था जब देश इमरजेंसी, लोकतंत्र और न्यायपालिका के बीच संतुलन जैसी चुनौतियों से गुजर रहा था।
- 1988 में वे भारत सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील बने थे।
- 1993 में उन्हें आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
- 2005 में वे गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने।
- और फिर 2007 में उनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के न्यायाधीश के रूप में हुई।
न्यायपालिका में योगदान
संविधान सिर्फ कागज पर लिखी बात नहीं, बल्कि जनता के अधिकारों की रक्षा का जिंदा दस्तावेज़ है। न्यायपालिका को जनता के प्रति जवाबदेह और संवेदनशील रहना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार और लोकतंत्र उनके फैसलों का मूल आधार रहा।
सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के बाद 2013 में उन्हें गोवा का पहला लोकायुक्त नियुक्त किया गया। यह नियुक्ति उस समय बेहद अहम थी क्योंकि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन अपने चरम पर था और लोकपाल-लोकायुक्त कानून लागू हो चुका था।
हालांकि, व्यक्तिगत कारणों से उन्होंने अक्टूबर 2013 में इस्तीफा दे दिया। लेकिन इस छोटे से कार्यकाल में भी उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि लोकायुक्त जैसी संस्थाएं लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने के लिए बेहद ज़रूरी हैं।
- कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उन्हें “प्रगतिशील विधिवेत्ता” बताया।
- यह पहली बार हुआ जब एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज सीधे उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने।
- उनका मुकाबला NDA उम्मीदवार और तमिलनाडु के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन से होना तय हुआ।
भारत का उपराष्ट्रपति सिर्फ “राष्ट्रपति के बाद दूसरा संवैधानिक पद” नहीं है, बल्कि वह राज्यसभा के सभापति भी होते हैं। राज्यसभा, यानी संसद का ऊपरी सदन, जहां नीति, कानून और बहस का स्तर सबसे ऊँचा होना चाहिए।
ऐसे में एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज का इस पद पर आना संसद की कार्यवाही की गुणवत्ता और गरिमा को और बढ़ा सकता है।
जनता बी. सुदर्शन रेड्डी को एक ईमानदार, बेदाग़ और निष्पक्ष उम्मीदवार मान रही है। खासकर शिक्षित वर्ग, वकील बिरादरी और युवा चाहते हैं कि राजनीति में ऐसे चेहरे सामने आएं जिनका अतीत विवादों से मुक्त हो।
उनकी उम्मीदवारी ने विपक्ष को एक नैतिक ताकत दी है। अब देखना यह होगा कि चुनाव में आंकड़ों का गणित उन्हें कितना सहयोग देता है।
2025 का साल भारतीय राजनीति के लिए ऐतिहासिक साबित हो सकता है। एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज का राजनीति में आना न केवल चर्चा का विषय है बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक मिसाल है। बी सुदर्शन रेड्डी का यह सफर हमें यह सिखाता है कि न्याय और राजनीति एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, बल्कि अगर सही सोच और ईमानदारी से दोनों को जोड़ा जाए तो यह समाज और देश के लिए वरदान साबित हो सकते हैं।
उनका राजनीति में सफर अभी शुरू हुआ है और आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि वह किस पार्टी या मोर्चे के साथ खड़े होते हैं और किस तरह जनता के मुद्दों को उठाते हैं। लेकिन इतना तय है कि उनकी छवि और उनकी नीयत उन्हें बाकी नेताओं से अलग खड़ा करेगी।