भारत एक ऐसा देश है जिसकी पहचान केवल इसकी संस्कृति, परंपरा और विविधता से ही नहीं, बल्कि इसके कारीगरों और शिल्पकारों से भी होती है। हज़ारों वर्षों से भारत के गाँवों और नगरो में कारीगरों ने अपने हुनर से समाज की जरूरतें पूरी की हैं। चाहे लोहे का औजार बनाना हो, लकड़ी से घर सजाना हो, मिट्टी से बर्तन तैयार करना हो, कपड़ों में कला भरनी हो या सोने-चांदी के गहने गढ़ना हो – हर कारीगर ने भारत की आत्मा को जीवित रखा है। यही कारण है कि उन्हें “विश्वकर्मा” कहा जाता है। लेकिन बदलते दौर और औद्योगिकीकरण ने इन कारीगरों की दुनिया को बदलकर रख दिया।
योजना की शुरुआत
- कारीगरों और शिल्पकारों को सशक्त बनाने के लिए शुरू की गई सरकारी योजना।
- उद्देश्य है – पारंपरिक कारीगरों को आधुनिक तकनीक और वित्तीय मदद से जोड़ना।
हमारा भारत 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती मना रहा है, यह योजना भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और हाशिए के समुदायों के उत्थान के लिए केंद्र है।
2025 में नए बदलाव
2025 में यह योजना एक नए स्वरूप में सामने आई है। अब यह केवल एक वित्तीय सहायता योजना नहीं है, बल्कि यह कारीगरों के लिए एक संपूर्ण विकास कार्यक्रम बन गई है। इस योजना का सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन और डिजिटल हो गई है। यानी कोई भी कारीगर अब अपने गाँव से ही मोबाइल फोन या नज़दीकी कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) के माध्यम से आवेदन कर सकता है।
- पूरी प्रक्रिया अब 100% डिजिटल।
- घर बैठे मोबाइल या CSC सेंटर से ऑनलाइन आवेदन संभव।
- सीधा पैसा लाभार्थी के खाते में, कोई बिचौलिया नहीं।
मिलने वाले लाभ
कारीगरों को मिलने वाले लाभों की बात करें तो सबसे पहले उन्हें औजारों और उपकरण खरीदने के लिए आर्थिक सहायता दी जाएगी। यह राशि उन्हें उनके काम की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद करेगी। इसके अलावा, उन्हें प्रशिक्षण के दौरान स्टाइपेंड मिलेगा जिससे वे बिना चिंता के अपनी स्किल्स को और मजबूत बना सकें। सरकार ने योजना में लोन की भी सुविधा दी है, जिसके तहत कारीगर 1 लाख रुपये तक ब्याज मुक्त और 2 लाख रुपये तक कम ब्याज पर लोन ले सकते हैं।
इस योजना का सामाजिक प्रभाव भी काफी बड़ा है। कारीगर अक्सर समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं। ऐसे में उन्हें आर्थिक और तकनीकी मदद मिलना उनके आत्मविश्वास को बढ़ाएगा। यह योजना न केवल उनकी आमदनी बढ़ाएगी, बल्कि उनके परिवार की ज़िंदगी भी सुधारेगी। बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य और जीवन स्तर में बड़ा बदलाव आएगा।
डिजिटल युग में जब हर काम ऑनलाइन हो रहा है, तो कारीगरों को भी डिजिटल दुनिया से जोड़ना बेहद ज़रूरी है। प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के तहत प्रशिक्षण के दौरान उन्हें डिजिटल पेमेंट, ऑनलाइन बिज़नेस और ई-कॉमर्स जैसी सुविधाओं की जानकारी दी जाएगी। इससे वे नकद लेन-देन की जगह ऑनलाइन माध्यमों से काम करेंगे और उनका व्यवसाय और सुरक्षित तथा पारदर्शी बनेगा।
महिलाओं की भागीदारी
महिलाओं के लिए भी यह योजना किसी वरदान से कम नहीं है। अब तक कई महिलाएँ अपने हुनर को केवल घर तक सीमित रखती थीं। वे मिट्टी के खिलौने, कपड़ों पर कढ़ाई, बांस के उत्पाद या हस्तकला का काम करती थीं, लेकिन उन्हें बाजार तक पहुँच नहीं मिलती थी। अब वे भी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर रजिस्टर होकर अपनी कला को पहचान दिला सकती हैं। इससे न केवल उनकी आय बढ़ेगी, बल्कि उनके आत्मविश्वास में भी जबरदस्त बढ़ोतरी होगी।
- घर की महिलाएँ जो बुनाई, कढ़ाई, मिट्टी या बांस का काम करती थीं, अब अपने उत्पाद बेच पाएँगी।
- उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक पहचान दोनों मिलेंगी।
यह योजना भारत की सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखेगी। अक्सर जब पारंपरिक व्यवसाय लाभदायक नहीं होते, तो नई पीढ़ियाँ इन्हें छोड़ देती हैं। लेकिन जब सरकार इन्हें आर्थिक और तकनीकी सहायता देगी, तो युवा भी इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित होंगे। इससे भारत की परंपरा और हस्तकला दुनिया भर में अपनी पहचान बनाए रखेगी।
प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना 2025 केवल वर्तमान को ही नहीं, बल्कि भविष्य को भी ध्यान में रखकर बनाई गई है। आने वाले समय में जब भारत आत्मनिर्भर बनेगा, तो यह योजना उसकी रीढ़ साबित होगी। लाखों कारीगर और शिल्पकार आत्मनिर्भर होकर देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देंगे।